Khabron Ke Khiladi: सीएम पद की खींचतान का क्या होगा परिणाम हरियाणा में बागी किसका करेंगे ज्यादा नुकसान,

जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बीच इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में कांग्रेस और भाजपा बागियों को लेकर चर्चा हुई

समीर चौगांवकर: भाजपा और कांग्रेस, दोनों को विरोधियों से ज्यादा अपनी ही पार्टी के बागियों से चुनौती मिल रही है। मुझे लगता है कि अगर कांग्रेस की सरकार आती है तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही मुख्यमंत्री बनेंगे, भले ही कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला अपनी दावेदारी पेश कर रहे हों। तो भाजपा का वहां 10 साल तक मुख्यमंत्री रहा है। भले पार्टी कह रही है कि जीतने पर नायब सिंह सैनी ही मुख्यमंत्री होंगे इसी तरह अगर भाजपा जीतती है तो सैनी ही मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे।

अवधेश कुमार: हरियाणा जैसे राज्य में लंबे समय बाद कांग्रेस में कुछ नेता अपनी बात कहने के लिए खड़े हुए हैं। रही बात भाजपा की तो 2019 में उनकी ही पार्टी के विद्रोहियों ने पांच सीटें हरा दी थीं। इसी आधार पर उनका विरोध है। जो कुछ हरियाणा में दिख रहा है, वह सतह पर इससे ज्यादा है। इस समय देश में विचारधारा, जीवन मूल्य, पार्टी के आदर्श, सब मौन हो गए हैं। अब व्यक्ति की आन, बान, शान, पद, प्रभाव और पैसा ज्यादा अहम हो चुका है। यह कांग्रेस के अंदर भी है और भाजपा के अंदर भी। यह जरूर है कि भाजपा में यह थोड़ा कम है। वहीं, पांच पर बागी जीतकर आए थे। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद भाजपा 50 से ज्यादा सीटें जीतकर आई होती। जहां तक कुमारी सैलजा की बात है तो उन्हें बताया नहीं गया कि उनके समर्थकों को क्यों टिकट नहीं दिया गया। इसी आधार पर उनका विरोध है। जो कुछ हरियाणा में दिख रहा है, वह सतह पर इससे ज्यादा है।

रामकृपाल सिंह: खींचतान हर पार्टी में होती है। हर पार्टी में महत्वाकांक्षी लोग होते हैं। केवल उस पार्टी में खींचतान नहीं हो सकती है, जिसमें केवल एक ही नेता हो और बाकी सभी कार्यकर्ता हों, लेकिन ऐसा होता नहीं है। कुछ समय पहले ही मध्य प्रदेश, राजस्थान में कहा जा रहा था की कांग्रेस की लहर चल रही है। नतीजे कुछ और रहे। इसलिए नतीजों के पहले कुछ कहना सही नहीं होगा।

राकेश शुक्ल: अनिल विज को पता है कि 2014 के बाद भाजपा में मुख्यमंत्री वही बनेगा, जो आलाकमान तय करेगा। सैलजा की कहनी यह है कि वो कांग्रेस की नब्ज को दबा रही है। सैलजा दलित और महिला के नाम पर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रही है। सैलजा और हुड्डा, दोनों के समर्थकों को पता है कि मंच साझा करने से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कम नहीं होती है। अगर बहुमत आता है तो चेहरा चयन करने में काफी दिक्कत आने वाली है। इस बार कांग्रेस चेहरे पर चुनाव लड़ रही है तो भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। पूर्णिमा त्रिपाठी: जिस तरह खींचतान चल रही है, यह क्या रूप लेगी, यह चुनाव के बाद तय होगा। चुनाव के बाद अगर कांग्रेस को बहुत बड़ा बहुमत नहीं मिलता है तो समीकरण बहुत रोचक होने वाले हैं। भाजपा और कांग्रेस के अलावा जो दल हैं, उनके अपने वोट बैंक हैं। उन्हें जो वोट मिलेंगे वो कांग्रेस का ज्यादा नुकसान करेंगे। इनेलो हो या जजपा या फिर आप, ये सभी दल भाजपा से ज्यादा कांग्रेस का नुकसान करेंगे।

विनोद अग्निहोत्री: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव में सभी कह रहे थे कि मध्य प्रदेश में कांटे की टक्कर है तो छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस आ ही रही है। नतीजे कुछ और रहे। इसी तरह लोकसभा चुनाव में भी नतीजों के दिन दोपहर 12 बजे तक लोग नतीजे पटलने के दावे कर रहे थे। आज की तारीख में हुड्डा जी के समर्थकों को सबसे ज्यादा टिकट मिले हैं। उनकी स्वीकार्यता सबसे ज्यादा है, लेकिन चुनाव के बाद क्या समीकरण बनते हैं, यह कोई नहीं कह सकता है।

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