Jammu Kashmir Election

Jammu Kashmir Election: भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन से नए और पुराने नेतृत्व में संघर्ष, समन्वय की कमी; डैमेज कंट्रोल जारी

Jammu Kashmir Election: आगामी दिनों में कई क्षेत्रों में भाजपा के खिलाफ विरोध बढ़ने की आशंका है। इससे कई संभावित क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ता बंट गए हैं। जम्मू संभाग के कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को पुराने नेतृत्व का विरोध झेलना पड़ रहा है।

पिछले दस साल बाद जम्मू कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव में ऐसा होना भी लाजमी था। भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन से पुराने और नए नेतृत्व में समन्वय बनता नजर नहीं आ रहा है। लंबे समय से सिपाही की तरह पार्टी की सेवा कर रहे वरिष्ठ नेताओं को सम्मान और टिकट न मिलने पर विरोध जारी है। अब तक पार्टी को अलविदा कहने वालों में कई संस्थापक सदस्य, जिला अध्यक्ष, वरिष्ठ नेता आदि शामिल हैं।

देश के राजनीतिक इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो पीढ़ी परिवर्तन में आखिरकार नए नेतृत्व को पुराने नेतृत्व के अनुभव की जरूरत पड़ी है।भाजपा से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ चंद्र मोहन शर्मा का दावा है कि वह भाजपा से 1974 से जुड़े हैं। वह भारतीय जनता युवा मोर्चा में 1980 से 89 तक लंबे समय तक प्रदेशाध्यक्ष बने रहे। उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की पीढ़ी बदलाव राजनीति में ऐसा देखने को मिल चुका है।

वहीं, पिछले 40 सालों से भाजपा से जुड़े कश्मीरी सिंह ने भी जिला अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया था कि वे पिछले चार दशक से जिस विचारधारा के खिलाफ संघर्ष करते रहे आज पार्टी उसी विचारधारा के लोगों को अपने साथ लेकर चल रही है। उनका आरोप है कि नए नेतृत्व ने पुराने साथियों को सम्मान नहीं दिया है। नया नेतृत्व श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा दिए गए सिद्धांतों को भूल गया है। पुराने चेहरों को नजरअंदाज करना पार्टी को नुकसान होगा।

इससे पहले जम्मू उत्तर से ओमी खजूरिया, अखनूर से जगदीश भगत आदि ने समर्थकों के साथ विरोध जताया था। इसी विचारधारा को लेकर भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष पद पर रहे एडवोकेट कणव शर्मा भी पार्टी को छोड़ चुके हैं। उन्होंने नेकां की ओर से इशारा करते हुए कहा कि भाजपा ने कई विधानसभा क्षेत्रों में नेकां से आए लोगों को टिकट देकर पुराने सच्चे सिपाहियों से विश्वासघात किया है।

आगामी दिनों में कई क्षेत्रों में भाजपा के खिलाफ विरोध बढ़ने की आशंका है। इससे कई संभावित क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ता बंट गए हैं। जम्मू संभाग के कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को पुराने नेतृत्व का विरोध झेलना पड़ रहा है। 

डैमेज कंट्रोल में जुटे प्रभारी, सांसद, प्रदेशाध्यक्ष
टिकट आवंटन के बाद उपजे हालात में डैमेज कंट्रोल के लिए जम्मू कश्मीर मामलों के प्रभारी तरुण चुग, सांसद जुगल किशोर शर्मा, प्रदेशाध्यक्ष रवींद्र रैना आदि जुटे हुए हैं। इसमें रुठे नेताओं को किसी तरह दबाव के बाद मना लिया जा रहा है, लेकिन उनके समर्थक काबू में नहीं आ रहे हैं। अब समर्थकों द्वारा रैलियां प्रदर्शनों से यह विरोध दिखाया जाने लगा है।

भाजपा एक परिवार की तरह काम करती है- रवींद्र रैना
परिवार के सदस्यों से ही गिला शिकवा होता है। हम मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं और पचाल प्लस के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। पार्टी के लगभग सभी वरिष्ठ नेता भाजपा के साथ खड़े हैं। प्रदेशाध्यक्ष रवींद्र रैना का कहना है कि भाजपा एक परिवार की तरह है और सभी मिलकर काम करते हैं।

भाजपा के सामने चुनौती जरूर, पर हिंदुत्व विस क्षेत्रों पर अधिक प्रभाव के आसार नहीं
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. एलोरा पुरी का कहना है कि भाजपा के सामने पुराने नेतृत्व का रुठना चुनौती जरूर है, लेकिन हिंदुत्व विधानसभा क्षेत्रों में इसका अधिक प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है।इस परिवर्तन से पहले भी हजारों पुराने लोग भाजपा से जुड़े हैं, जो पार्टी के पुराने सिद्धांतों पर खड़े रहे। डॉ. पुरी का कहना है कि 2009 से पहले जम्मू कश्मीर में भाजपा अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती रही है। 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद देशभर में लाखों नए चेहरे पार्टी से जुड़े। इसमें कुछ को फायदा दिखा तो कुछ दबाव में आए।

जम्मू कश्मीर में दस साल के लंबे समय बाद चुनाव हो रहे हैं, जिसमें अधिकांश जगहों पर स्थानीय प्रतिनिधित्व को नेतृत्व देने की उम्मीद थी, लेकिन टिकट आवंटन में कई जगह ऐसा नहीं हुआ है। जिसके परिणामस्वरूप विरोध हो रहा है। भाजपा के बीच मौजूदा गतिरोध का एक कारण यह भी है कि जिस पुराने नेतृत्व ने पार्टी के लिए उम्र भर नेकां की विचारधारा के खिलाफ संघर्ष किया आज वही विचारधारा पार्टी में शामिल हो गई है। इसमें नगरोटा और सांबा से नेकां से आए नेताओं को भाजपा की ओर से टिकट दिना जाना है।

जम्मू कश्मीर में 2009 से चुनाव इतिहास पर नजर डालें तो हिंदुत्व वाले क्षेत्र में भाजपा मजबूत रही है, इसलिए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का प्रभाव रहेगा। पुराने नेतृत्व में वरिष्ठ नेता अगर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरते हैं तो भी उनका अधिक प्रभाव रहने की उम्मीद नहीं है। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में वोट प्रतिशत पर कुछ असर पड़ सकता है। लेकिन कुल मिलाकर अधिक प्रभाव नहीं दिखेगा। भाजपा की आलोचना तो की जाती है, लेकिन चुनाव के आखिर में अधिकांश लोग कमल पर बटन दबाते रहे हैं। लोगों में गुस्सा जरूर है, मगर हिंदुत्व विधानसभा क्षेत्र में इतना प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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